कच्ची मुहब्बत
कच्ची मुहब्बत
छूप छुप के तुम्हे कब तक हम देखते रहेगे
कब तक इस दिल के अरमान यु घुटते रहेगे
क्यों नही समझ पाते हो तुम आँखों की जुबां
डरते है यह होंठ कहने से यह कुछ न कहेंगे
आँखे तकती रहती है दिन रात बस राहे तेरी
तेरा आइना ही बन के रह गई है आँखे मेरी
तुम भी तो शरमाते रहते हो देख कर मुझको
कब तक हम एक दूजे से नज़ारे चुराते रहेंगे
शायद तुम करते हो इंतजार मेरे इकरार का
और हमें डर लगता है बस तेरे इंकार का
डरते है कही यु ही ना खो बैठे हम एक दूजे को
कब तक हांथो में नाम तेरा छुपा के रखते रहेंगे
कितना प्यार दिल ही दिल में तुमसे कर बैठे हैं
तुझे दिल के मंदिर की देवी बना करे पूजते रहते हैं
रोज कितना मांगे हम तेरे लिए खुदा के दर से
वो भी चुप रहता है क्या आप भी चुप ही रहेंगे।

