कभी कभी जिंदगी
कभी कभी जिंदगी
कभी कभी जिंदगी कुछ देकर भी देना नहीं चाहती
काश एक दिन आए जब वो देना चाहे पर मैं न लूँ।
आज वो खेल रही है हालातों के साथ जज्बातों के साथ
वो भी दिन आए खुदा जब मैं खुद जिंदगी के साथ खेलूँ।
वो आकर मेरे दामन में कुछ डालना भी चाहे तो
मै अपना दामन छुपा उसकी आँखों मे आँख डाल,
कहूँ की जा छीन ले और जो छीनना ही नहीं चाहे।
चेहरे पे ऐसी मुस्कुराहट हो कि ये जिंदगी भी
शर्मसार हो जाए और अपनी नजरें नीची कर ले।
वो शायद मेरे जीवन का अंतिम दिन भी हो सकता है
क्योंकि वो शायद मेरे इस व्यवहार से रुठ भी जाए।
लेकिन सुकून होगा कि यहाँ तूने देना क्या चाहा पर
मैंने यहाँ तेरी नहीं चलने दी और अपनी मर्ज़ी का चुना....
