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Bhawna Kukreti Pandey

Tragedy

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Bhawna Kukreti Pandey

Tragedy

कब तक

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स्त्री कब तक 

छली जाओगी तुम 

राधा की उपमा से

राधा जो स्वयं छली गयी थी

कृष्ण से उस युग में भी ।


देह,मन, धन 

की गन्ध से

आकर्षित होता

हर युग का कृष्ण,

मोहता है तुम्हें,

अपने नये पुराने ढंग से।


कर मुक्त 

कण्ठ प्रशंसा

चाहता है खेलना 

रास तुम संग

स्व निर्धारित 

उन्मुक्त प्रहरों मे।


तुम छली गई हो

शब्द बांसुरी की 

स्वर लहरियों से 

मंत्र मुग्ध हो 

चली आती हो 

उसे अपना मान कर

अपना अस्तित्व 

भुला कर 

उसकी प्रिय सखी

या अन्तिम प्रेयसी 

होने का भ्रम लिये।


उसे केली कर 

लौट जाना है द्वारका,

अपने कुल मे 

पूजा जाना है रुक्मणी से,

और तुम 

वन मे विचरती हो बेकल

विरह मे उसकी

रागिनियोँ को गुनगुनाती।


स्तिथि तुम्हारी 

जान देखो 

वह स्वयं भी नहीं आता ,

भेजता है उद्धव संग ज्ञान 

तुम्हें समझाने को,

उद्धव जो अनभिज्ञ है 

प्रेमी हृदय के दाह से।


तुम मूक हो 

सुनती हो, 

उसी की बात मे

कृष्ण को गुनति हो 

फिर छली जाती हो 

उसी कृष्ण के नाम पर 

निरूत्तर हो 

लौटाती हो कृष्ण को 

अपनी समर्पित भावनाएं।


कृष्ण निश्चंत हो 

निभाते है अपनी भूमिका

अपने रूप महलों मे 

भक्तों के हृदयोँ मे 

संसार के चौबारोँ मे

अपने विराट उज्जवल स्वरूप मे।


और राधा तुम, 

तुम कहाँ दिखती हो ? 

ना ,तुम वो नही

जो दिखती हो 

राधा-कृष्ण मन्दिरों मे।


तुम हो वो 

जो हर उस देह मे हो,

हर उस हृदय मे हो,

जहाँ कृष्ण ने हमेशा ही

छल से बनायी है

तुम्हारे

प्रेम की समाधि।


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