कौन समझाए
कौन समझाए
हरियाली ही हरियाली
चारों ओर होती थी,
मैं जंगल का राजा हूँ,
सब के दिलो में खौफ मेरा था,
दूर दूर तक जंगल ही जंगल था,
कोई मानव नजर ना आता था,
चारों तरफ जंगली जानवर ही होते थे,
मुझसे डरते थे दूर मुझसे भागते थे,
मौसम बदला अब तो ऐसा,
जंगल ही मानव है काट रहे,
हमारा बसेरा हमसे है छीन रहे,
नहीं रहा कोई इनके दिलो में,
हमारा है वध कर रहे,
जंगल काट काट कर शहर
अपने बसा रहे,
पेड़ पौधों को काट काट कर
तिजोरी अपनी भर रहे,
किस को सुनाऊ मैं दर्द अपना,
डरते है सब मुझसे अब भी,
पर फिर भी मेरा ही कत्ल है
कर रहे,
मेरे दोस्तों का मेरी बिरादरी का
खात्मा है कर रहे,
ये मानव तो बड़े स्वार्थी है,
दर्द पीड़ा किसी की क्यों ये
समझते नहीं ,
स्वार्थ में अंधे होकर प्रकृति को
नष्ट ये कर रहे,
कौन समझाए इनको की
गर एक पेड़ काट रहे हो
तो हज़ार और लगा दो ।
