कौन सा शब्द बोलूं मैं
कौन सा शब्द बोलूं मैं
कौन सा शब्द बोला जाए,
सभी किसी कि देन लगता है
जब भी कुछ बोलता मैं हूं,
सबका उसमें अभिनय लगता है
कौन सा शब्द बोला जाए !
मौन रहने में अड़चन है,
झुंड आक्रामक हो जाता है
जहां बसेरा सत्य का है,
वहां आक्रमण हो जाता है
कौन सा शब्द बोला जाए !
अब सोचता हूं कि-
अग्निदूत सा बोलूं मैं
जैसे उन्होंने अपने वक्त बोला था
चाहे कुछ भी हो जाए जहान में
लेकिन उन्होंने अपना शब्द न छोड़ा था
मैं भी अब चलता हूं उसी राह पर
अपने शब्द की खोज में बढ़ता हूं
देखता हूं मैं, खुद से, खुद में,
कितने शब्दों को खोज पाता हूं !
तब शायद यह प्रश्न न उठेंगे मन में,
कौन सा शब्द बोला जाए !