कौन दे
कौन दे
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मौत को ज़िन्दगी की दुआ कौन दे
दिल को बीमार-ए-ग़म की दवा कौन दे।
चल रहा है लिए दिल में ग़मगीनियां
आदमी को ख़ुशी का पता कौन दे।
जिनके मन में नहीं डर है कानून का
उस गुनहगार को फिर सज़ा कौन दे।
सबको आगे निकलने की जल्दी पड़ी
भीड़ के दौर में रास्ता कौन दे।
बच निकलता है करके गुनाह हर कोई
सो रहा है ख़ुदा अब क़ज़ा कौन दे।
हर तरफ ज़ुल्म की आग है जल रही
क्या पता इसमें आके हवा कौन दे।
डर बहुत लग रहा है "पिनाकी" को भी
जाने कब ज़िन्दगी में दग़ा कौन दे।