कौन बोला ?
कौन बोला ?
लगता था मैं कर पाऊँगा, गर बढ़ाऊँ कदम छू लूँगा आसमान,
पर अंदर था भय का बवंडर, और उभर आता साँसों का तूफान,
रूक जाते थे बढ़ते से कदम और एक आवाज़ चीरती तन्हाई,
बैठ जाओ मुन्ना, तुमसे ये ना हो पाई !
यह कौन बोलता मेरे भीतर से, एक ज़र्रा जो मेरे अंदर था,
वह कोई नहर नहीं, ना वाे झरना, एक गहरा सा समंदर था !
उसकी लहरें जलती बुझती, ले जाती मुझे लक्ष्य से दूर,
फिर भी साहस करकें मैं आगे आता अपनी जिद से मजबूर !
जैसे ही मैं शब्द टटोलता, वहीं आवाज़ चीरती तन्हाई,
बैठ जाओ मुन्ना, तुमसे ये ना हो पाई !
उसका मैं ना कोई प्रतिद्वदी, ना मैं था कोई प्रतियोगी,
ना दोस्ती का कोई था नाता, ना ही वो मेरा सहयोगी !
ना बैर था जन्मों-जन्मों का, फिर क्या था यह बेनाम नाता,
रिश्र्ता ये अनजान सही, बस मुझको वो बिल्कुल नहीं भाता !
मेरे नैन जब लब खोलते, वहीं आवाज़ चीरती तन्हाई,
बैठ जाओ मुन्ना, तुमसे ना हो पाई !
तुम बचपन से छुपे थे वहाँ, मैंने ही दिया दाना-पानी,
कली को ना मसलकर, मैंने की है बड़ी ही नादानी !
डर का खत खा बढ़ते रहे तुम, पर अब यह सब और नहीं,
मैं भी ढूंढ लुूँगा मंजिल को, कुछ मुश्किलें और सही !
मेरा प्रण जब ज़ोर पकड़ता, फिर वहीं आवाज़ चीरती तन्हाई,
बैठ जाओ मुन्ना, तुमसे ना हो पाई !
पर अब सबने है ठाना, हम सब मिलके लड़ेंगे यह जंग,
आत्मविश्वास, साहस और हौसला, सब आऐंगे संग-संग !
कोई और नहीं ये शस्ख है मेरे मन का वहम, समझा सोचा,
सुना है यह है दिमागी उपज सिर्फ एक केमिकल लोचा !
उठ खड़ा हुआ उसी क्षण फेंक दी आलस्य की रजाई,
आश्चर्य, अब वो आवाज नहीं आई !
अब सुनूँगा वहीं स्वर और राग जो दे मुझको नई ऊर्जा,
पहुँचूँगा अब उस मकाम पर जो मिला दे मुझे मेरा दर्जा !
हर कठिनाई से लड़ने की अब दिल में जागी है वो चाह,
अनसुने कर दो हर वो लब्ज जो भूला दे ज़ीत की राह !
तालियों के शोर में घुट गई तन्हाई, सिर्फ एक ही आवाज आई,
वाह मुन्ना, तुम तो छा गए भाई !
