माँ की अभिलाषा
माँ की अभिलाषा
चाह नहीं तुम किशन कन्हैया की भाती, हर घर में पूजे जाओ!
उस बांसुरीवाले की तरह, हर गोपी के मन को ललचाओ!
यशोदा और देवकी पुत्र बन, हर माँ का आशिष पाओ!
माखनचोर बनकर, अपनी बाल लीलाओं से सबको रिझाओ!
संहार करो हर कंस का इतनी विरता, साहस और बल पाओ!
मैं तो बस चाहूँ कि , तुम जीवन की उस गहराई तक जाओ!
हर पल को कैसे जीते है, बस इस बात को जान जाओ!
इतना जरूर सीखो की, और कई पीढ़ियों को भी सीखलाओ!
सदा हँसते मुस्कुरातें रहो और खुब खुशियाँ बिखराओ!
एक सामान्य मनुष्य की असामान्य अद्भुत पहचान पाओ!
इस सुंदर दुनिया को खोजो और हमें भी दिखलाओ!
चाह मेरी बस है इतनी, तुम इतना ज्ञान जरूर पाओ!
की अपनी सरलता की खुशबू से, हर एक आँगन को महकाओ!
