" कैसी ये दरिंदगी "
" कैसी ये दरिंदगी "
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न जाने कितनें चेहरे
छुपें हैं सबकें चेहरों पर
इंसान कहाॅं वो दिखते हैं
हर जगह देखो वहाॅं
गूंगें बहरें ही बसते हैं
काम इंसान हैं ऐसा करते
कि शैतान भी शर्मिंदा है
कैसें समझें हम कि
इंसान यहाॅं पर जिंदा है
घरों पे नाम ओहदों के रहते
कहाॅं कोई इंसान मिलता है
ये ऐसी ही दुनिया है
इंसान जहॉं पर बिकता है
सितम की इंतहा
चल रही है
जाने किस राह पर
दुनिया चल रही है
जहॉं देखो भरी पड़ी
बेशर्मों की बस्तीं है
सिर्फ रूतबें वालें की
चलती अपनी हस्तीं है
बिगड़ी हुई समाज की व्यवस्था
कोई न समझें बच्चियों की अवस्था
आत्मा सबकी मर चुकी
पूरी खोखली बन चुकी
इंसान अपने घर से निकलकर
न जाने कितने रंग बदलता है
ऊपर से दिखता कुछ और है
अंदर से और कुछ होता है
रंग गिरगिट की तरह
बदलता है हर इंसान
ना जानें वों कैसें
बन जाता है शैतान
यह हिंसा क्यों होती है
मानवता क्यों सोती है
जनता कुछ
नहीं बोलती है
पत्थर की बूत बन जाती है
छोटी गुड़िया क्या जानें
किस रूप खड़ा है भेड़िया
हे माॅं इतनी शक्ति देना
जिन्हें लगा दूं बेड़िया
ना जाने कितने लोगों के
मन में भरी पड़ी है गंदगी
प्रलय आ जाए उसके पहलें
मानव तू करलें बंदगी
देख लों कुदरत का खेल
तुम हो जाओगें इसमें फेल
कुछ नहीं कर पाओगें
यूं ही ढ़ेर हो जाओगें
समय ऐसा है खराब
हो गया शर्मनाक इंसाफ
इंसानियत है तिल तिल मरती
हैवानियत हो जाती है माफ
वक्त का खेल निराला है
मझधार में सबकी जिंदगी
हवाओं में है मौत घूम रही
पर नहीं छोड़ रहा दरिंदगी
बन जातें हैं जो दरिंदा
ना जानें कैसे रहतें
खुद की नजर में जिंदा
नहीं बची है लोगों में इंसानियत
हर जगह मौजूद है इनकी हैवानियत
हर किसी को हक है
अपनें जीवन का हिस्सा जीनें का
खिलती कली को भी हक है
बंया करें दु:ख अपनें सीनें का
जहॉं देखों अबोध बच्चियों की
गूंजती है चित्कार
मां तू इनकी रक्षा के लिए
फिर आ जाओं एक बार।