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ravindra kumar

Romance

5.0  

ravindra kumar

Romance

कैसे लिखूं तुझपर कविता

कैसे लिखूं तुझपर कविता

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कैसे लिखूं तुझपर कविता।

क्या लिखूं तुझपर कविता।

क्या पिरो पाऊंगा निज कामना ,कुछ शब्दों में।

या छोड़ दूंगा भटकने कुछ आड़ी टेढ़ी लकीरों से।

करू बखान तुम्हारी सुंदरता का

या तेरी सादगी की महिमा बोलु।

तेरी मन की सुंदरता ने दिल जीता

सादगी ने छीन लिए बचे होश।

शालीनता की प्रतिमूर्ति तुम

क्यों रहती हो इतनी खामोश।

डूबी रहती हरदम किसी गम में।

बिखेरती खुशियां अपने दामन से।

दर्द जमाने भर का सीने में।

देती सबक सबको जीने के।

रहती कुछ कटी कटी सी खुदसे।

शायद कोई खता हुई जो मुझसे

जुगनू की भांति आती है।

एक झलक दिखाकर चली जाती है।

खड़े रह जाते है हम उस बालक से

जिसे आस जगी हो उसे पाने की।

गुस्ताख़ दिल है पर डरतें है जमाने से।

तुमसे ही तो जगमग है बगिया सबकी।

कितनी खामोशी थी इस बगिया में

फैलाये तुमने कितनी जगमगाहट।

किसी और से क्या दुवा करें

तुम ही बचे जो अब दवा करें।

कैसे लिखू तुझपर कविता।

क्या लिखूं तुझपर कविता।

कभी बोझिल सी तो कभी गम्भीर।

कभी नादाँ बच्ची तो कभी शातिर।

कभी ओस की बूंदों सी शीतल

तो कभी नम आँसू सी कड़वी।

जितना भी समझू उतनी मुश्किल।

खुद ही न भटक जाये ये दिल।

शायद है कोई स्वप्न परी

या फिर हूँ मैं किसी ख्वाब में।

गहरी आंखे उसकी सबनम भरी

मन उसका लगे किसी बोझ से मरी।

कहीं टूट न जाये ये सुंदर स्वप्न।

खो जाएगा सब अपनापन।

कैसे लिखू तुझपर कविता।

क्या लिखूं तुझपर कविता।


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