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Nimisha Pareek

Tragedy

4.3  

Nimisha Pareek

Tragedy

कैसा ये युग है

कैसा ये युग है

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कैसा ये युग है, लड़ रहा मनुष्य है। 

बंद है खिड़की, बंद है दरवाज़ा 

बंद है खिड़की, बंद है दरवाज़ा 

क्यों चारों  दिशाओं मे है सन्नाटा। 


कैसा ये युग है, लड़ रहा मनुष्य है। 

बच्चे है बंद एक कमरे में, जो खेलते थे कभी, 

जो हँसते थे कभी, आज क्यों है खामोश, 

क्यों मन में आज ये डर है?? 

कैसा ये युग है, लड़ रहा मनुष्य है। 


चारों और मचा है हाहाकार,

खामोश और विरान है ये संसार .... 

एक आशा कि किरण सब के दिल में है, 

की एक उगता सूरज आयेगा,

जो इस जग को महकायेगा 

कैसा ये युग है, लड़ रहा मनुष्य है। 


ऐ, मनुष्य आज क्यों है तू लाचार, तू कर विचार 

पूछती ये सवाल आज सृष्टि है। 

कल जो तूने बोया, आज वही तू काटेगा,

दुख - दर्द तू अपना किस से बांटेगा!!!! 

जंग का ये मैदान है, लड़ रहा हर इंसान है । 

खुले है पक्षु , खुले हैं पक्षी पर आज तू ही बंद हैं... 

कैसा ये युग है, लड़ रहा मनुष्य है। 


अति हो गई, संभल जा इंसान 

कहती आज माँ पृथ्वी है, कर न इतना

दुराचार मेरे इस संसार के जीवों के साथ 

नहीं तो वह समय जल्द आयेगा

जब तू मिट्टी में मिल जाएगा, 

अत: कलयुग ये कहलायेगा। 

                    


          


  


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