कातिल नहीं है
कातिल नहीं है
किया सरेबाजार कत्ल फिर भी कातिल नहीं है,
ताउम्र चाहा उसे मगर मर के भी हासिल नहीं है।
उस बेवफ़ा का चेहरा देखो लगता बहुत मासूम है,
मगर हया का पर्दा उसमें भी शामिल नहीं
आंखों में थमती नहीं बारिश उसकी जुदाई में,
वो समझते हमें अपने प्यार के काबिल नहीं है।
छोड़ दुनिया का रंग-ढंग बदले जिसके लिए,
वो कहते हैं यूं कि अभी हम क़ामिल नहीं है।
जूझ रहे हैं लहरों से खोज में एक तिनके की ,
बहुत ढूंढा अभी तक मिला कोई साहिल नहीं है।
खुदा को झूठा मानकर सच्चा माना उस यार को,
किया सजदा यार का, किसी और के कायिल नहीं है।
प्रेम ने दिल दिया था तुम्हें जानकर मासूम दिलदार,
तुमने ही तोड़ा दिल कोई और उसका कातिल नहीं