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Vikas Sharma

Drama

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Vikas Sharma

Drama

काशवी हो जाना है !

काशवी हो जाना है !

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इस प्रकृति की सबसे प्यारी आवाज़

काशवी का किलकारी मारना

दोनों टांगो को साईकिल - सा चलाना

हाथों में आसमां को समेटने के जज़्बे के साथ

लम्बी - सी किलोल


आँखों में अद्भूत कौतुहल

हर आवाज़ को परखने का

हर चित्र कुरेदती वो

उसकी तह से भी परे जाने की चाह

चीज़ो को मुँह तक ले जाकर फेंक देना

नयी आवाज़

नया चेहरा

उसके लिये रोना भी छोड़ दे

विस्मय की अनोखी दुनिया में जाने के लिए


मेरी उंगुलियों को पकड़कर खड़ा हो जाना

छोटे -छोटे क़दमों को मेरी छाती पर आगे बढ़ाना

उसका उठता हर कदम उसको

और मुझे आनंद से सरोबार कर देता

वो सोते से अचानक जाग जाती है

अब उसकी मम्मी के सिवा

उसे कोई चुप नहीं करा सकता


वो हंसती है

अपनी ख़ुशी बता देती है

नापसंदगी को भी जाहिर करती है

भूख के लिए भी चिल्लाती है

डर में भी चीखती है

उसके ज़ेहन में पलते हैं सारे विचार

और वो इनको निश्छलता से बाँटती है हम सबसे


मुझे डर है की हमारी भाषा

उसे भी मुखौटे में जीना ना सिखा दे

क्योंकि मैंने अक्सर

भावों की कब्रगाह पर ही शब्दों को उगते देखा है

ये सच से परे

झूठ में सने होते हैं


हम सबको भी काशवी हो जाना चाहिए

जो है सो दिखना चाहिए

ये जो बड़े होकर समझदार हो जाना है

मुझे और मेरी दुनिया को

इसी समझदारी से बचना है

ये बड़ा होना

सभ्य व समझदार दुनिया –

जो हमारी सच्चाई के खून से ज़िंदा है

आओ तय करें

कि किसे जीवन देना है –

बड़ा होना है या काशवी हो जाना है !


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