काश
काश
आज जैसे ही नज़र कैलेंडर में पड़ी
आज की तारीख देखी भाई
वो
एक साल पहेली की मीठी यादों
की झलक सामने आने लगी
वो
खुशियों से भरा घऱ
वो
स्वागत क़े लिए बिछाएं फूल
याद है
वो
भाभी का पहेली बार घर में स्वागत
का दिन था
वो
३,४ दिन पहले से तेरा मुझे कहना
के तुझे आना ही है
इसके पास तुज़े रहेना ही है
तू आएगी तो इसे औऱ
ज़्यादा तो मुझे अच्छा लगेगा
बार बार मुझे बुलाकर तेरा पूछना
इसका मन तो यहाँ लग रहा हैं ना।
इसने अच्छे से खाया ना।
इसको सिर में दर्द तो नहीं हो रहा ना।
इसको कुछ चाहिए तो नहीं ना।
इसको कोई परेशानी तो नहीं हो रही ना।
जब कोई ना हो तब
इसके धुधंट को पिछे किया करना।
इसके साथ बात किया करना।
इसको ये घऱ अपना लगे
वैसे महसूस कराती रहेना।
भाभी कि हर एक छोटी से छोटी बातों का
तेरा इनके लिए का ध्यान रखना
याद है
फ़िर भाई
ऐसा क्या हुआ कि
अब वो दिन को हम अच्छी यादों की
लिस्ट में सेव नहीं रखना चाहतें।
काश भाई
तु थोड़ा इसे अच्छे से समझता
काश भाभी तुज़े अच्छे से समझा पाती
काश भाई
तुने इस दिन अपने गुस्से को
कंट्रोल किया होता।
रिश्ते में अपने इगो को साईड में रखा होता।
काश भाई
तुने सब कुछ हो जाने के बाद
मुझसे बात शेर की वो पहले की होती।
काश भाई
मुझे डिवोर्स चाहिए इनके ये कहने पे
तुने पर मुझे तुज़से जुदा नहीं होना ये कहा होता
काश ज़ो हुआ वो ना हुआ होता।
तो आज के दिन को हम बड़े अच्छे से मना रहे होते।
काश।
