काश। तुम होते
काश। तुम होते


तुम्हे पाने की आरजू
कुछ तो कम होती,
मन मे तुम्हे खोने के डर
कुछ तो कम होते
काश तुम होते,
होती कुछ रुसवाई भले जमाने मे,
फिर मैं रातो को चैन से सोती,
उन ग़मो को बाटती तेरे संग,
ऐसे ही चाँद रातो में नही रोते,
काश तुम होते।।
कितनी चिंताए सताती है मनको,
जीवन की झुर्रियां चेहरे पे नजर आती,
व्यर्थ की आशंकाएं आखों को भिगोती,
अब केवल यादों में ही तुम रहते,
काश तुम होते।।
तुम बिन में अकेली हूँ
थोड़ी उलझी थोड़ी व्याकुल हूँ,
नादान है बच्चे जो पूछ बैठते है तुम्हारे बारे में,
पूछते है कि पापा कहां है रहते,
काश तुम होते।।
हो मायूस देख उनके दोस्तों को जिनके पिता
है लाते नए नए खिलौने उनके लिए,
मुझसे कहते है पाप कब हमे भी खिलौने लाएँगे?
क्यों न हमे वे मेला घूमने ले जाते
काश तुम होते।।
मैं कैसे उन्हें बताऊ
कालचक्र के नियम को कैसे समझाऊ,
जीवन जीवन बोता है किंतु अमर नही होता,
जहाँ तुम चले गए वहाँ का वे पता है चाहते,
काश तुम होते।।
मैं उनको तुम्हारी वीरता की निशानी बताती,
सजे हुए तिरंगे में लिपटी तुम्हारी वर्दी दिखाती,
रखे तुम्हारे कितने ही मेडलों की कहानी सुना,
आँखों मे छुपे अधूरे सपनो को साकार बनाते,
काश तुम होते।।
इतना आसान नही होता
जज़्बा वीरता को पाने का,
जलाए रखना उस दिये को जो तुम्हारे नाम का है,
होता है गर्व जब लोग मुझे शहीद की पत्नी है कहते,
काश तुम होते।।