काश कुछ कहा होता...
काश कुछ कहा होता...
कैसा होता है
जब सोचा हुआ
हो ना पाए!
यूं ही नहीं मिले हम
वो आए बाकायदा
ठहरी हुई सांझ तले
एक पल वो भी था
आमने-सामने थे हम,
निःशब्द हम थे,
मौन था पसरा हुआ,
कुछ बातें हुई
गैरजरूरी सी,
उनके जाने के बाद
चले हम भी राह अपनी,
कदम मखमली सा लगा,
पंखुड़ियां गुलाब की
बिछी वहां थीं
शायद लाए थे
वो गुलाब
पीछे मुड़े हाथों की
बंदिशों से ढीली पड़
बिखर चुकी थीं वो
पंखुड़ियां हाथों से भी
और दिल से भी!
काश कुछ कहा
उन्होंने होता
तब वो नज़ारा
अलग ही होता!
गुलाब जमीं पर नहीं,
गेसुओं में हमारे
शोभायमान होता!

