कारवाँ
कारवाँ
:- यह रचना उन मजदूर भाईयों को समर्पित है जो आज कोरोना महामारी की वजह से दरबदर होने को मज़बूर है l
कारवाँ भी चलता रहा,
ठिकाने भी बदलते रहे l
अनचाही सी प्यास मे,
दरबदर से भटकते रहे l
गिरे कई बार डगर में,
गिरकर हम संभलते रहे l
टूटी ख्वाहिशों के साथ,
जीते और मचलते रहे l
किस्मत भी रूठी रही,
हालात रंग बदलते रहे l
ख्वाब भी हुए चूर चूर,
कभी बेबस बिखरते रहे l
रब भी आज़माता रहा,
कभी अपने परखते रहे l
वीरान सी इस दुनियाँ में,
कभी खुद मे सिमटते रहे l
रिश्तों की इस भीड़ में,
कभी बेकस तरसते रहे l
अपनो को याद करके,
कभी आंसू बरसते रहे l
कारवाँ भी चलता रहा,
ठिकाने भी बदलते रहे l
ना जाने किस उम्मीद मे,
इधर उधर भटकते रहे l