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Arya Vijay Saxena

Tragedy

4.5  

Arya Vijay Saxena

Tragedy

कारवाँ

कारवाँ

1 min
311


:- यह रचना उन मजदूर भाईयों को समर्पित है जो आज कोरोना महामारी की वजह से दरबदर होने को मज़बूर है l

कारवाँ भी चलता रहा, 

ठिकाने भी बदलते रहे l

अनचाही सी प्यास मे, 

दरबदर से भटकते रहे l


गिरे कई बार डगर में, 

गिरकर हम संभलते रहे l

टूटी ख्वाहिशों के साथ, 

जीते और मचलते रहे l


किस्मत भी रूठी रही, 

हालात रंग बदलते रहे l

ख्वाब भी हुए चूर चूर, 

कभी बेबस बिखरते रहे l


रब भी आज़माता रहा, 

कभी अपने परखते रहे l

वीरान सी इस दुनियाँ में, 

कभी खुद मे सिमटते रहे l


रिश्तों की इस भीड़ में, 

कभी बेकस तरसते रहे l

अपनो को याद करके, 

कभी आंसू बरसते रहे l


कारवाँ भी चलता रहा, 

ठिकाने भी बदलते रहे l

ना जाने किस उम्मीद मे, 

इधर उधर भटकते रहे l



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