गुमनाम शायर
गुमनाम शायर
मैं तो वो इक हसीं सी परवाज़ हूँ,
जिंदादिली भी मुझ पर, बेहद नाज़ करती है l
डर नहीं मुझे अब गुमनामियों का,
गुमनामियां भी मेरी, अब दिलों पर राज करती है l
ख़ामोश नहीं अब, क़लम ये मेरी,
चलती है शर्माकर, पर हरसूँ आवाज़ करती है l
थक जाती है अक्सर, लिखावटें सभी,
पर थमती नहीं, और जिंदगी संग रियाज़ करती है l
भले बेफ़िक्र सी है, ये बेपरवाहियां मेरी,
फिर भी है फिक्रमंद, और हर कर्म आज करती है l
डर नहीं राहों को, अब बदगुमानो से,
जो मंजिलों से इश्क़, और बदी से लाज करती है l
समेट लेती है सांसे, ग़मों को मेरे सभी,
रखती है सब्र हिज्र में, ना कुफ्र सा काज करती है l
शौक है मुझे, अब तूफ़ानों से टकराने का,
झुकती नहीं हिम्मतें, और गर्जना सा साज़ करती है l
भले लाख ज़ालिम हो, रिवायतें ज़माने की,
परवाज़ अब ये मेरी, ना तबीयत नासाज़ करती है l
छुपा लेता हूँ अब, हर ख्वाहिश को सीने में,
उम्मीदें मंज़िलों को, ना फ़िर भी नाराज करती है l
फ़ेर लेता हूँ नजरे, ज़माने के हर कुफ्र से,
मेरी ख़ामोशियां अब, हर कुफ्र का इलाज करती है l
ओढ़ा लेता हूँ चादर ख़ुद को इत्मीनान की,
सरगोशियाँ अक्सर, बेदर्द सी आवाज़ करती है l
मैं तो वो इक गुमनाम सी आवाज़ हूँ,
ख़ामोशियां भी मुझ पर, शिद्दत से नाज़ करती है l
खौफ़ नहीं मुझे अब, जरा गुमनामियों का,
गुमनामियां भी मेरी, अब दिलों पर राज करती है l
