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Arya Vijay Saxena

Abstract Fantasy

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Arya Vijay Saxena

Abstract Fantasy

गुमनाम शायर

गुमनाम शायर

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मैं तो वो इक  हसीं  सी परवाज़ हूँ, 

जिंदादिली भी मुझ पर, बेहद नाज़ करती है l

डर  नहीं  मुझे अब गुमनामियों  का, 

गुमनामियां भी मेरी, अब दिलों पर राज करती है l


ख़ामोश  नहीं  अब,  क़लम  ये  मेरी, 

चलती है शर्माकर, पर हरसूँ आवाज़ करती है l

थक जाती है अक्सर, लिखावटें सभी, 

पर थमती नहीं, और जिंदगी संग रियाज़ करती है l


भले बेफ़िक्र सी है, ये बेपरवाहियां मेरी, 

फिर भी है फिक्रमंद, और हर कर्म आज करती है l

डर नहीं राहों को, अब बदगुमानो से, 

जो मंजिलों से इश्क़, और बदी से लाज करती है l


समेट लेती है सांसे, ग़मों को मेरे सभी, 

रखती है सब्र हिज्र में, ना कुफ्र सा काज करती है l

शौक है मुझे, अब तूफ़ानों से टकराने का, 

झुकती नहीं हिम्मतें, और गर्जना सा साज़ करती है l


भले लाख ज़ालिम हो, रिवायतें ज़माने की, 

परवाज़ अब ये मेरी, ना तबीयत नासाज़ करती है l

छुपा लेता हूँ अब, हर ख्वाहिश को सीने में, 

उम्मीदें मंज़िलों को, ना फ़िर भी नाराज करती है l


फ़ेर लेता हूँ नजरे, ज़माने के हर कुफ्र से, 

मेरी ख़ामोशियां अब, हर कुफ्र का इलाज करती है l

ओढ़ा लेता हूँ चादर ख़ुद को इत्मीनान की, 

सरगोशियाँ अक्सर, बेदर्द सी आवाज़ करती है l


मैं तो वो इक  गुमनाम सी आवाज़ हूँ, 

ख़ामोशियां भी मुझ पर, शिद्दत से नाज़ करती है l

खौफ़ नहीं मुझे अब, जरा गुमनामियों का, 

गुमनामियां भी मेरी, अब दिलों पर राज करती है l



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