कान्हा
कान्हा
*हे कृष्ण.... *
मैं बनूँगी देह सम,
तुम गन्ध बन मिलना मुझे
बज उठूँगी राग सी,
तुम छन्द बन मिलना मुझे।
तेरे पथ के शूल सब,
आँखों से चुन लूँगी मैं
मैं तुम्हें बो दूँगी खुद में,
सुगन्ध बन मिलना मुझे।
मैं बंधूंगी देह मन और
वचन के साथ तुम से
चाह तुमसे कुछ नहीं,
निर्बन्ध बन मिलना मुझे।
न तुझे मैं जानती,
न जानने का मोह ही कुछ
है ललक अगले जनम,
सम्बन्ध बन मिलना मुझे।
तेरी हर मर्यादा का और
हर रिश्ते का मुझको भान है
पर ये अन्तिम चाह है,
स्वच्छन्द बन मिलना मुझे..!!