कान्हा संग होली
कान्हा संग होली
पूजा की थाली सजी देखो लड्डू गोपाल संग
रोली भी है अक्षत भोग भी अबीर गुलाल संग।
संग-संग होलिका के हमें बैर को जलाना है
प्यार और स्नेह के रंगों से इसे सजाना है।
कान्हा तूने बिरज में खूब रंग खेले प्रीत के
प्यार बांटा कभी हार के और कभी जीत के।
होली में ओ सुन रे मुरारी तू ही हमारा नायक है
कान्हा कहे सब रखो प्रेम दुश्मनी तो नाहक है।
गोपियों संग नेह की राधा संग प्रेम की होली
वृंदावन हो या ब्रज मोहन तो बोले प्यार की बोली।
गोविंदा तो भाईचारे प्रेम का का प्रणेता है
प्रेम का है पर्व होली यही संदेश देता है।