काँच से रिश्ते
काँच से रिश्ते
क्यों रिश्तों को तुम हमेशा कांच सा समझते
तोड़ देते दिल को खुदा से भी नहीं तुम डरते हो
तुम्हारी इसी बेरुखी ने हमें जाम में हमें डुबो दिया
जो दुनिया तुम्हारे संग बनाई थी हमने जाने वो कहाँ है
हम तो इस प्रीत नगर में अपना कर सब कुछ लुटा बैठे हैं
अब तो न हमें मंजिल नजर आती ना रास्ता नजर आता है
जाने कहाँ जाना है हमको सोच -सोचकर दिल घबराता है
अब ना तुम पूछों मेरी पीडा़एं मुझे जैसा है वैसा ही रहने दो
अपनी इन नशीली नजरों से पिलाई थी जो जाम तुमने हमें
उसने हमें तुम्हारा बनाकर मदहोश - सा क्यों कर दिया
अब तो होश ही नहीं है हमें बेहोश-सा कर दिया है
और यहाँ छूट गया फूलों का वो दामन सारा
कांटो से अपना लगाव हो गया है
तुम तो हमें अकेला छोड़ अपनी राह चले गए
हम अभी वहीं खड़े बस राह निहारे तुम्हारी
मन में एक आस है तुम वापस आओगे फिर यहाँ
मिलोगे हमसे छोड़ गए थे तुम हमें जहाँ।