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Rajiv Jiya Kumar

Tragedy

4  

Rajiv Jiya Kumar

Tragedy

काला बाज़ारी

काला बाज़ारी

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अपनी बस्ती भर रही है उनसे

जिनकी दौलत से बस यारी

वक्त गुुजर रहा होकर बङा भारी

है शुरू सब ज़र की काला बाज़ारी।।

है अपने जमीं की बस यह बदहाली

सोने की चिङियाँ कहलाने वाली

है काले कागा में बदलने की तैयारी

है शुरू सब ज़र की काला बाज़़ारी।।

एकन्नी दुअन्नी की गुम हो गई बारी

टका दस का साथ तो झोला भारी

यह कथ्य दादाजी की थी बङी न्यारी 

है शुरू सब ज़र की काला बाज़ारी।।

बीज खाद से जो हुई शुुरुआत

दाल तेल तक पहुँच गई अब बात 

आग लगाने की घात पल पल है जारी

है शुरू सब ज़र की काला बाज़ारी।।

कर न पाए तुम भी कुछ कलाकारी

बस व्यापार,व्यापारी से कर गए यारी

कलपती रह गई सजी सजी किलकारी

है शुरू सब ज़र की काला बााज़ारी।।

काला बाज़ारी हर आस की

काला बाज़ारी हर साँस की

काला बाज़ारी रिवाज रस्म की

काला बाज़ारी चिता भस्म की

नर्क बन रही जीवन की बारी

है शुरू सब ज़र की काला बाज़ारी।।

           


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