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Nand Kumar

Children

4  

Nand Kumar

Children

कागज की कश्ती

कागज की कश्ती

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बचपन के दिन भी क्या थे सुहाने ।

दुख और चिंता से बिल्कुल अनजाने ।

मित्रों की टोली में ही दिल था लगता ।

घण्टों का समय पता ही न चलता ।।


बारिश का जब आता मौसम सुहाना ।

 राहत  मिले  मन भी  गाए तराना ।

कागज की कश्ती हम मिल बनाते ।

बर्षा के जल में मगन हो तराते ।।


जल वेग से कश्ती बढती ही जाती।

लखकर खुशी हो न मन मे समाती ।

जिसकी भी कश्ती गल डूब जाती ।

कागज ले फिर पल में कश्ती बन जाती।।


बारिश में कश्ती चलाकर नहाते ।

आनन्द अलौकिक हम सब हैं पाते।

मेढक की टर-टर पपीहे की पिउ -पिउ ।

पत्तों की खन खन में सब झूम जाते।।


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