STORYMIRROR

Nand Kumar

Children

4  

Nand Kumar

Children

कागज की कश्ती

कागज की कश्ती

1 min
247

बचपन के दिन भी क्या थे सुहाने

दुख और चिंता से बिल्कुल अनजाने

मित्रों की टोली मे ही दिल था लगता

घण्टों का समय पता ही न चलता


बारिश का जब आता मौसम सुहाना

 राहत मिले मन भी गाए तराना

कागज की कश्ती हम मिल बनाते

बर्षा के जल में उसको तराते


जल वेग से कश्ती बढती ही जाती

लखकर खुशी हो न मन मे समाती

जिसकी भी कश्ती गल डूब जाती

कागज ले फिर पल में कश्ती बन जाती


बारिश में कश्ती चलाकर नहाते

पत्तों की खन खन में सब झूम जाते।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Children