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Deepak Srivastava

Abstract

4  

Deepak Srivastava

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ज्यादा कुछ ख़ास नहीं लिखता हूँ

ज्यादा कुछ ख़ास नहीं लिखता हूँ

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ज्यादा कुछ ख़ास नहीं लिखता हूँ 

बस अनसुलझे अल्फ़ाज़ लिखता हूँ

नुक़्ता, ज़ेर, ज़बर की मालूमात नहीं है मुझको।

 

कभी हिंदी में जज़्बात लिखता हूँ

तो कभी उर्दू में ख़्यालात लिखता हूँ 

ज्यादा कुछ ख़ास नहीं लिखता हूँ 

बस अनसुलझे अल्फ़ाज़ लिखता हूँ।


कभी सिसकी भरी आहे लिखता हूँ 

तो कभी चीख़ती दीवारे लिखता हूँ 

राजा रानी की कहानियाँ नहीं लिखता हूँ।

 

बेबस, लाचारी भरी ज़िंदगानियाँ लिखता हूँ 

ज्यादा कुछ ख़ास नहीं लिखता हूँ 

बस अनसुलझे अल्फ़ाज़ लिखता हूँ।


फ़रेबी दौर में फ़रेब नहीं लिखता हूँ 

फ़रेबी लोगो के अंदाज़ लिखता हूँ 

बहुत माहिर है यहाँ खुद को ऊँचा बताने वाले 

बस उनकी चापलूसी के किस्से तमाम लिखता हूँ।

 

ज्यादा कुछ ख़ास नहीं लिखता हूँ 

बस अनसुलझे अल्फ़ाज़ लिखता हूँ।


ना पूजा लिखता हूँ, ना इबादत लिखता हूँ 

बस मज़लूम की आवाज़ लिखता हूँ 

कभी हक़ की रोटी लिखता हूँ 

तो कभी रोटी पर हक़ की बात लिखता हूँ।

 

ज्यादा कुछ ख़ास नहीं लिखता हूँ 

बस अनसुलझे अल्फ़ाज़ लिखता हूँ।


रईसों की बाते कभी नहीं लिखता हूँ 

बस फुटपाथ की रातें लिखता हूँ 

छप्पन भोग नहीं लिखे जाते मुझसे 

तभी तो भूखों की आवाज़ लिखता हूँ।

 

ज्यादा कुछ ख़ास नहीं लिखता हूँ 

बस अनसुलझे अल्फ़ाज़ लिखता हूँ


होनी को क्या लिख सकता हूँ मैं 

डर अनहोनी का लिखता हूँ 

लिवास तो सबका अपना - अपना है 

बस लिवास में छिपे शैतान को लिखता हूँ।

 

ज्यादा कुछ ख़ास नहीं लिखता हूँ 

बस अनसुलझे अल्फ़ाज़ लिखता हूँ।


ख़ुशी तो चंद लम्हो की है यहाँ 

मैं तो दुखों की बारात लिखता हूँ 

दूर रहकर कैसे ज़िंदा रहोगे तुम 

बस पास रहने की दरख़ास्त लिखता हूँ।

 

ज्यादा कुछ ख़ास नहीं लिखता हूँ 

बस अनसुलझे अल्फ़ाज़ लिखता हूँ।


जब कभी कुछ नहीं लिखता हूँ 

तब मैं इंकलाब लिखता हूँ 

तंगहाली से निजात मिले इंसान को 

बस इसी बात को हर बार लिखता हूँ।

 

ज्यादा कुछ ख़ास नहीं लिखता हूँ 

बस अनसुलझे अल्फ़ाज़ लिखता हूँ।


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