क्यों अभिमान में आकर
क्यों अभिमान में आकर
क्यों अभिमान में आकर
तुम त्रिलोकी को भूल गए
नहीं मानते, तो बिल्कुल ना मानो
क्यों यश के झूले में झूल गए
नहीं करना था, तुम को ये कुकृत्य
क्यों कर तुम सनातन भूल गए
आखिर क्या कुसूर था, महाकाल का
जो तुम अपनी मर्यादा भूल गए
ठहरो, रुको, धैर्य रखो तुम
बुरे से बत्तर दिन में आओगे
पीस से तुम कटपीस हुए
अबकी चखत्तो में आओगे
इरादे तो पहले से ही नापाक
थे तुम्हारे
पर गंगोत्री ने तुम को पाक किया
अस्तित्वा तुम्हारा क्या था जरा सोचो
फिर भी तुमने ये पाप किया
खैर तुम्हारी तुम जानो
मैं अपने मन की कहता हूँ
खंडित तुमने किया है शिवलिंग
श्राप मिलेगा अवश्य, ये मैं कहता हूँ