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वाने नाम धरो कैलाशी ! ! !

वाने नाम धरो कैलाशी ! ! !

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जय अभिनाशी , जंगल को बासी 

महाकाल दुनियां को जाने 

वाने नाम धरो कैलाशी 

भांग धतूरो मन को भावे 

ना मिले तो भोले भये उपबासी 

काल डरे लुक - लुक कर भाजै 

ग़र मिल जाये बाबा को , तो जपे कैलाशी 

दुनिया चाहे सोना चांदी 

त्रिपुरारी मेरो मनबासी 

पिए भांग घूमे अघोरी , कानन - कानन 

छोड़ि मोह दुनिया को , भयो अघोरी बनबासी 

जटा में गंगा , भाल पे चंदा 

नैना है दरशन के अभिलाषी 

कण कण में महाकाल बिराजे 

वाने नाम धरो कैलाशी ! ! ! 


           



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