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sahil srivastava

Drama

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sahil srivastava

Drama

जूतों की जात

जूतों की जात

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माँ हमेशा से कहती थी,

बेटा जूतों को चमका के रखा करो,

और पापा अक्सर कह देते थे,

जूता खाओगे तुम हमसे अब,

आख़िर क्यूँ ?


मेरे पल्ले आज तक नहीं पड़ा,

शायद चमकीले जूते,

खाने में बेहतर लगते हो,

मुझे हमेशा से काले रंग के जूते पसंद थे।


और भाई को भूरे रंग के,

मैं जब भी भाई के संग जूते खरीदने जाता,

तो वापिस भूरे रंग के जूते ले आता,

आखिर क्यूँ ?


शायद मुझे जूतों से ज्यादा,

भाई पसंद था,

स्कूल में गर कभी,

बुधवार को सफ़ेद की जगह,

काले जूते पहन के चला जाता,

तो मास्टर जी की सुताई झेलनी पड़ती,

आखिर क्यूँ ?


शायद बुधवार को,

काले जूतों का अवकाश रहता हो,

एक रोज़ मोची के पास गया था,

अपने फटे जूते सिलवाने,

उसके ख़ुद के अंगूठे,

जूतों से बाहर झाँक रहे थे,

आखिर क्यूँ ?


शायद उसके पास पैसे ना हो,

ख़ुद के जूते सीने के,

स्कूल के, खेल के, पार्टी के,

रोज़मर्रा के और घूमने के,

कुल मिला के पाँच जोड़ी थे मेरे पास,

रंग अलग, रूप अलग,

मगर काम..


काम सबका एक,

पैरों की हिफ़ाज़त करना,

तो फिर ये इतना अलगपन,

आखिर क्यूँ ?

शायद,

जूतों की भी जात होती होगी।


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