जुर्म में सने हाथ
जुर्म में सने हाथ
अंधियारे में भला छिपा कहा,
जब हाथ रंगे हो कालिख में।
लाख छुपाना चाहे हम मगर,
राज खुलेंगे किसी तारीख में।
बदले की आग ने आज मेरा,
सब कुछ यूँ ही जला दिया।
हाथ तो आया कुछ नहीं पर
मुझे एक मुजरिम बना दिया।
धुआँ धुआँ है ये जहाँ सारा,
और अंधेरे में भी तन्हाई है।
अनजाने में ही सही पर,
हमने अपनी कब्र सजाई है।
क्या खोया और क्या पाया,
जो था सब कुछ भुला दिया।
और फिर अपने हाथों से हमने,
हस्ती को अपनी मिटा दिया।
जुर्म में अब हाथ सने है,
मामला भी लाचारी सा है।
भुला दिया अंधेरे में खुद को,
पता नहीं दुनियादारी क्या है।