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Amit Srivastava

Abstract Tragedy Others

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Amit Srivastava

Abstract Tragedy Others

जुगनू...

जुगनू...

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तकिये के नीचे रख के जैसे, कोई ख्वाब मुझसे खो गया 

आँखें खुली थी जाने कब से, बस मैं ही शायद सो गया 


पलकों के पीछे से अब भी, कई गुजरे लम्हे पिघलते हैं 

तारों की झिलमिल रातों से, मुझे जुगनू बेहतर लगते हैं 


रात घनी थी लेकिन कोई एक, दीया जला के छोड़ गया 

तकिये के नीचे रख के जैसे, कोई ख्वाब मुझसे खो गया ....



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