ज़ुबान का धोखा
ज़ुबान का धोखा
बस उस एक वादे की खातिर
खुशी से हार गया वो शातिर
बाजी वो पलट भी सकता था
पर फिर कैसे कहलाता वो फाखिर !
वो बात उस हवा में ही रह गई
सांस की आहट भी उसमें ही छिप गई
ज़रा सी ही तो चाह थी उसकी
वो भी बस एक दुआ में बदल गई !
ज़रूरत थी जब बयान करने की
अपने इश्क़ के एहसास कराने की
जज़्बात अपने बिखेरने की
अपने लफ़्ज़ों के पिटारे खुलाने की !
बस तब ये ज़ुबान धोखा दे गई
ज़रूरत थी तब यूं दगा दे गई
खिलाड़ी वैसे तो वो पुराना था
पर किसी और की शह उसे मात दे गई !