STORYMIRROR

VIKAS KUMAR MISHRA

Inspirational Others

4.6  

VIKAS KUMAR MISHRA

Inspirational Others

जरा सुनो!

जरा सुनो!

1 min
1.7K


हैं लफ्ज़ तो बहुत

पर सुनने को कान नहीं!

जो है भी तो कचरेदान से

फूहड़पन से इश्क़ किये बैठे है!


बदल लेते है कानों के छिद्र की दिशाएँ उलट

जिस ओर से हवा मेरे लफ़्ज़ों को लाती है!

हाँ है थोड़ी तीखी, थोड़ी कड़वी

क्या करूँ के मैं वो नही कह सकता

जो मेरा हर आमों-खास सुनना चाहता है!


नही होता तुम्हारी बालियों का जिक्र,

मेरे शब्दो में!

तुम्हारी अदाओं का, मेरी कविता में!

क्या करूँ की वासना के अनाज का पीसान

मेरे लफ़्ज़ों में नही गुथता!

या किसी के राज मन भीतर दफ्न नही होते!


हर पसंद-नापसंद के वहम के दरम्यां

ये जान लो के लफ़्ज़ों पर मेरे पहला हक मेरा है!

तो इससे पहले के तुम सुनना क्या चाहते हो

मुझे खयाल करना होगा के मैं कहना क्या चाहता हूँ!


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational