Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

VIKAS KUMAR MISHRA

Abstract

5.0  

VIKAS KUMAR MISHRA

Abstract

उधेड़बुन

उधेड़बुन

1 min
601


बेअदब था जिंदगी से

जीने के उसूल मालूम नहीं थे !

कुछ गलतियों का मैं इंसां

कुछ कर गुजरा होश में होके !


कहो न जो अब भर दूँ जुर्माना

खता मेरी माफ कर दोगे ?

अरमानों को जहाँ भर के

लफ्जों में मैं पिरोना चाहता था !


हुआ कुछ यूं कि इल्म मुझे

अपने ही दिन और रात की नही

मैं हुआ भी वही जो तुम चाहते थे

ये मैं वो नही जो मैं चाहता था !


कहो जो चंद लम्हें मैं वक़्त से पीछे कर दूँ

तो ख्वाब मेरा लौटा दोगे ?

जिंदगी की उधेड़बुन से सीखा बहुत कुछ

दिखाया बहुत कुछ, छुपाया बहुत कुछ।


कुछ अपने बने, हुये कुछ पराये !

फिर कहाँ से दोनों के दरम्यान, एक तुम आये !

जमीं जिंदगी की बंजर ही रहती

धार औजारों से यूँ ऊबड़खाबड़ न लगती !


जो टके चंद तुम्हारी जेबों में भर दूँ,

कत्ल अहसासों के मेरे, जरा फिर कर दोगे ?


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract