बेशरम का डंडा
बेशरम का डंडा
जाने क्यूँ लोग उसे बेशरम का डंडा बुलाते थे ?
मेरे साथ तो उसकी कुछ अलग ही यादें जुड़ीं हैं !
वो गरीबो के क्रिकेट का दूसरी छोर का बल्ला हुआ करता था !
वो बचपन के क्रिकेट ग्राउंड का स्टंप हुआ करता था !
मास्टर जी और पिता जी के हाथों की छड़ी हुआ करती थी !
दस के फटे नोटों को जोड़ने की तब वही कड़ी हुआ करती थी !
बचपन जब खेलने की घड़ी हुआ करती थी
बेशरम के डंडो से ही मेरी इमारत खड़ी हुआ करती थी !
सर्दी की रातों में बैलों के दाएं इसी से तेज हुआ करते थे
कभी कभी गायों को चराने वो और मैं साथ जाया करते थे !
हो गया हूँ मैं भी जवां और शायद शर्म उसे भी आने लगी है !
बेशरम के डंडों की उम्र भी शायद अब कम हो चली है !
