ज़रा बैठो कुछ देर तो
ज़रा बैठो कुछ देर तो
बैठो ज़रा कुछ देर तो,
छोटी सी एक फरियाद करें।
नज़रों में तुम्हारी झांक कर,
कुछ सवाल आजाद करें।
वक़्त की कमी नहीं है हमें,
पर क्यूं ये शाम बर्बाद करें?
बैठो ज़रा कुछ देर तो,
थोड़े सवाल जवाब करें।
ये जो जुल्फों को झटक कर यूं,
बारिशें छोड़ देती हो।
पायल की एक आहट से यूं,
तरंगें घोल देती हो।
तुम्हारी कमर से उठती लहरों,
पर भी तो कुछ अनुवाद करें।
आओ बैठो ज़रा कुछ देर तो,
दिल के कुछ अल्फ़ाज़ कहें।
ये जो फूल सजाए हैं गालों पर,
ये किस से उधार मांगे हैं।
ये तीखी नज़रों के तीरों से,
किस पर निशाने ताने हैं।
जो बेजान तुम्हारी बेरुखी से,
उनको क्यूं बर्बाद करें।
ज़रा बैठो थोड़े करीब तो,
हम अपने भी हालात कहें।
सिर्फ तोड़ना ही जानती हो,
या बनाना आता है तुम्हें?
निभा सकती हो मोहब्बत भी,
या बस सताना आता है तुम्हें?
कह दो इश्क़ क़ुबूल है,
या हम अपना दिल फौलाद करें।
बस इतना ही कहना था तुमसे,
बोलो तो कुछ और मुराद करें।

