लहर
लहर
किनारे पर बैठे हुए,
एक लहर पांव सेहरा गई।
मैंने कहा क्यूं अपना आलय छोड़,
तुम किनारे तक आ गई?
बोली कुछ थके लगते हो,
भीड़ में अकेले लगते हो,
सोचा थोड़ा साथ दे जाऊं,
अपने होने का एहसास दिलाऊं।
मैं भी थोड़ा भटक गई हूं,
सबसे आगे निकल गई हूं,
तुम्हारा दर्द मैं जानती हूं,
तुमको तुम सा पहचानती हूं,
बस केवल दो कदम पीछे जाना है,
फिर अपनी गहराइयों संग मिल जाना है।
मैंने कहा अच्छा किया तुमने,
जो मुझे तुम सीख दे गई,
मेरी भटकी हुई राह में,
ज़रा सी प्रेम की भीख से गई।
अब तुम भी जाओ, मिल जाओ,
अपनी बिछड़ी हुई तरंगों से।
मैं भी चलकर मिलता हूं अब,
अपनों से नई उमंगों से।