खिड़कियां
खिड़कियां
इमारतों की कतारों का ये जो जंगल बना सा है,
सब बुझा बुझा है यहां,बस जगमगाती हैं खिड़कियां।
इर्द गिर्द अपने एहसासों के, गर चुन दो तुम भी दीवारें,
उम्मीद में खुशियों की, कुछ बना लेना खिड़कियां।
मोहब्बत कब किस रूप में दर पर आए क्या मालूम,
खटकाए कोई दिल को, तो खोल देना खिड़कियां।
करे कोई इज़हार गर इश्क़ का तुमसे कभी,
कहना कुछ नहीं, पलकों की झुका लेना खिड़कियां।
कुबूल हो मोहब्बत मेरी तो मुस्कुरा देना तुम ज़रा,
इंतजार करना मेरा और खोले रखना खिड़कियां।

