दौड़
दौड़
मसरूफ हैं सब लोग,
ज़िन्दगी बसर करने में इस कदर।
लम्हे गुजर जाते हैं,
जीना छूट जाता है।
और,
वो जो मौजूद है हर वक़्त,
गम हो चाहे खुशियों में तुम्हारी,
नजरअंदाज होता है इतना,
कि जज्बा टूट जाता है।
ज़रूरतें समेटने की दौड़ में,
कब दौड़ ज़रूरत बन गई।
चाहे भागो या ना भागो,
पसीना छूट जाता है।
जिसे हासिल करने की चाहत,
लगती थी आसमां छूने के जैसे कभी,
वही सामान आंगन में पड़ा,
बारिश में भीग जाता है।
सब कुछ मिला, सब ले लिया,
पर हसरतें कम नहीं होती।
जब पकड़ते है एक छोर,
तो दूजा छूट जाता है।
शिकवे अलग , शिकायत अलग,
सबकी अपनी अपनी फेहरिस्त हैं।
गर मनाओ परायों को,
तो अपना रूठ जाता है।
