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S N Sharma

Abstract Tragedy

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S N Sharma

Abstract Tragedy

जफा का क्या करें

जफा का क्या करें

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जो सल्तनत बिक ही गई चाह उसकी क्या करें।

जो दूसरों का हो ही चुका याद उसकी क्या करें। 


हम तो वफा करते रहे ता उम्र अपनी तरफ से। 

जो वफा ना कर सके उनकी जफ़ा का क्या करें। 


इस नाव को इख्तियार है लहरों के संग बहती रहे

ना हाथ में पतवार हो बेबस है माझी क्या करें। 


दोस्ती तूफान से करने चला एक दीप पगला 

साथ जो न निभ सके इस वजह का क्या करें। 


टूट कर पत्ता गिरा गुलशन की इसमें क्या खता ।

चाहत न थी यह पेड़ की पर हो गया तो क्या करें।



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