ज्ञान का प्रतीक -बाबा भीमराव
ज्ञान का प्रतीक -बाबा भीमराव
विद्वानों के विद्वान, थे भारत के सच्चे सपूत।
यातनाओं से डरे नहीं कभी, बने रहे मजबूत।
बाबा साहब अम्बेडकर, थे बहुत ज्ञानवान।
जिद से जद की मिसाल बन पाए सम्मान।
ज्ञान का प्रतीक बन, विदेशों में डंका बजा।
दलितों के हक खातिर, कंटकों में ताज सजा।
रामजी-भीमाबाई की चौदहवीं थे संतान।
निम्न जाति पैदा हुए कहके न मिला ज्ञान।
खुद के मेहनत लगन से पाए विविध ज्ञान।
मैट्रिक-बीए की पढ़ाई बाद 25 रु का मान।
बड़ौदा नरेश की कृपा से, गए विदेश में पढ़ने।
कानून पढ़ वापस आए भारत का भाग्य गढ़ने।
अर्थशास्त्र, राजनीति कई विषयों की कर ली पढ़ाई।
ऊँचे पद पर रहते हुए भी अछूत सा अपमान पाई।
छुआछूत, ऊँच नीच, भेदभाव बाबा ने दंश झेला था।
सवर
्णों के बुरे व्यवहार से विधिवेत्ता को झमेला था।
कुशाग्र बुद्धि के धनी, वकालत से बीड़ा उठाई थी।
कत्ल मुकदमे की गुत्थी जिरह से सुलझाई थी।
धीरे धीरे अछूतोद्धार की संघर्ष की ज्वाला चलाई थी।
लन्दन गोलमेज में जाकर अपनी पीड़ा बताई थी।
हुआ देश सन सैंतालीस में आजाद एक लहर आई थी।
स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून मंत्री की भूमिका निभाई थी।
संविधान समिति के अध्यक्ष की जिम्मेदारी अपनाई थी।
दलितों के कल्याण उद्धार हेतु कई योजना बनवाई थी।
जीवन भर अछूत का दंश झेल बहुत पीड़ा पाई थी।
जीवन के अंत काल में बाबा ने बौद्ध धर्म अपनाई थी।
नमन वंदन उस गुरु को जिनका बाबा भीमराव नाम है।
गर्व करता है पूरा भारत जिनपर दिया हमें संविधान है।