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Sundar lal Dadsena madhur

Abstract Tragedy Inspirational

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Sundar lal Dadsena madhur

Abstract Tragedy Inspirational

बुरे दौर को भूल जाते हैं

बुरे दौर को भूल जाते हैं

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गुजरे बुरे दौर को अब भूल जाते हैं।

आओ मिलकर नया भारत बनाते हैं।

चलो मिलकर नया भारत बनाते हैं।


उम्मीदों के फूल सँजोकर,भविष्य नया बनाते हैं।

नवनिर्माण हो रहा भारत का,साहस के पंख लगाते हैं।

हौसलों के नींव खोदकर,मन का तमस मिटाते हैं।

युवाओं का सुंदर भारत,प्रेरणा का दीप जलाते हैं।

गुजरे बुरे दौर.................................1


काट के धरती किये वीरान,चलो वृक्ष लगाते हैं।

साँसों का मोल पता चला,अब तो सुधर जाते हैं।

सूख न जाये अपनी धरती,उसका श्रृंगार कराते हैं।

बंजर हो गई धरती अपनी,मिलकर वृक्ष लगाते हैं।

गुज

रे बुरे दौर....................................2


जो हार गए हैं मन से,उन्हें भला चंगा बनाते हैं।

सड़े हुए पानी को,निर्मल पावन गंगा बनाते हैं।

बिछड़े हुए हैं कितने यहाँ, उन्हें राह दिखाते हैं।

जो गलती हुई है हमसे,उसे फिर ना दोहराते हैं।

गुजरे बुरे दौर....................................3

घर कर गया है मन में,उस डर को मिलकर भगाते हैं।

भयमुक्त हो भारत अपना,उम्मीदों के किरण जगाते हैं।

गर खो गई है साहस मन की, उन्हें ढाँढस बँधाते हैं।

भयभीत हुआ है मन तो मधुर,प्रेम सौहार्द्र फैलाते हैं।

गुजरे बुरे दौर.................................4


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