वो पिता कहलाता है
वो पिता कहलाता है
जीवन की हर मुश्किलों से जूझना सिखाता है।
जो पिता ऊँगली पकड़कर चलना सीखाता है।
जीवन के हर दर्द सहकर भी वो मुस्कुराता है।
वो घर का मुखिया ही नहीं,पिता कहलाता है।।
हर की हर जरूरत को जो पल में पूरा करे।
घर को मुख्य दिशा दे,जीवन में खुशियाँ भरे।
बिन बताये हमारे लक्ष्य को जो परिलक्षित करे।
पल पल में स्थितियों को बदलना सिखाता है।
वो घर का मुखिया ही नहीं,पिता कहलाता है।1।
थाम कर उँगली सही गलत का ज्ञान पाया है।
शुभ संस्कार दे गुरु का कर्तव्य भी निभाया है।
हौसला पा कर जिनसे मैं नित्य आगे बढ़ा हूँ।
उन्हीं
पिता की बात मधुर आपको बतलाता है।
वो घर का मुखिया ही नहीं,पिता कहलाता है।2।
क्या बिना दिशा के कोई पथ में आगे बढ़ पाया है।
क्या बिना शुरुआत के कोई माउंट चढ़ पाया है।
क्या कभी बिन तेल के कोई दीपक जल पाया है।
पिता ही है जो हर परिस्थिति में साथ निभाता है।
वो घर का मुखिया ही नहीं,पिता कहलाता है।3।
जब पिता का साथ हो,खुशियों का संसार मिले।
पिता सदा ही सिखाते हर प्राणी को प्यार मिले।
अनुभव की खान वो,जिनसे खुशियाँ अपार मिले।
माँ गर वसुधा तो पिता आकाश बन जाता है।
वो घर का मुखिया ही नहीं,पिता कहलाता है।4।