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Sundar lal Dadsena madhur

Abstract Tragedy Inspirational

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Sundar lal Dadsena madhur

Abstract Tragedy Inspirational

गजल- संस्कार चाहिए

गजल- संस्कार चाहिए

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गजल-      *संस्कार चाहिए*


घटती घटनाएँ कहतीं हैं,मानवता धर्म शर्मसार हो चुकी।

मानवता के पुजारी अब तो आओ,धरा बेजार हो चुकी।


कफन का टुकड़ा भी नसीब नहीं हो रहा है देखो मधुर।

दो गज जमीन नसीब नहीं,धूमिल सारे संस्कार हो चूकी।


बंद बोतलों में पानी,अब तो सासें भी बिकने लगी हैं।

लगता है प्रकृति से बहुत ही ज्यादा खिलवाड़ हो चुकी।


काट धरती वीरान पड़ी है,जिससे गली सुनसान पड़ी है।

अब भी सुधर जाओ मधुर,धरती अब बेजार हो चुकी।


चंद रुपयों खातिर जिंदगी दांव पर,इंसानियत शर्मसार है।

बहुत कमाया जिंदगी में पैसे,लेकिन सब बेकार हो चुकी।


बीमारी के नाम पर देखो कितनी हो रही है कालाबाजारी।

भूख से मर रहे हैं लोग,अब इंसानियत तार तार हो चुकी।


दो दो हाथ मिल बढ़ो सभी, चरामेति सा संस्कार चाहिए।

अब तो अवतार लो प्रभु, का जीवन खार हो चुकी।


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