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Dr. Anu Somayajula

Abstract

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Dr. Anu Somayajula

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जंगल

जंगल

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कितना आसान था चित्रों को रंगना

आसमान नीला ही होता

कभी कोई सफ़ेद, स्याह बादल बनता

पेड़ सदा हरे ही रहते


कुछ झोपड़ियां या

इक्के-दुक्के, कच्चे-पक्के घर होते

गोबर मिट्टी से लीपे 

पत्तों की छाजन या खप्पर वाले 

घर वाले बेगाने होकर भी अपने से लगते।


आसमान अब भी नीला है

बस, बादल ज़हरीले धुंए के बनते हैं

धूल, धुएं में लिपटे

पेड भी अब हरे ना रहते हैं

घर मिट्टी के, ईंटों के ना हो कर

सिमेंट के, पक्की छत वाले होते हैं

इक्के - दुक्के नहीं


बस, जंगल से फैला करते हैं

पर महलों में रहने वाले

अब कमरों में भी बेगानों से रहते हैं।


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