जज्बात
जज्बात
तेरी कलम की स्याही बन।
तेरे खयालों को उकेरती हूं ।
हां, तेरे जज्बातों में ही तो रहती हूं।
मेरे सिरहाने कभी मेरे खयाल, तो कभी मेरे दर्द जगते हैं।
रात भर ये मेरी, करवटों में पलते हैं।
तेरी कलम की स्याही बन।
तेरे खयालों को उकेरती हूं ।
हां, तेरे जज्बातों में ही तो रहती हूं।
मेरे सिरहाने कभी मेरे खयाल, तो कभी मेरे दर्द जगते हैं।
रात भर ये मेरी, करवटों में पलते हैं।