जिसको भाषा से प्रेम नहीं
जिसको भाषा से प्रेम नहीं
शेष मनुजता के सर्गो ने क्रोधित हो हुंकारा है।
जिसको भाषा से प्रेम नहीं वह संस्कृति का हत्यारा है।।
आँखों में दंभ लिए फिरते कुछ लोलुपता के अन्धो ने,
अपना गौरव भी बेंच दिया मानव में छुपे दरिंदों ने।
अपनी मिट्टी का स्वाभिमान जो रेत में गिरवी रख आये,
अपना अमृत जो थूंक गैर का खारा पानी चख आये।
उनके ह्रदयों में नीर नहीं गंदे पानी की धारा है....
जिसको भाषा से प्रेम नहीं वो संस्कृति का हत्यारा है .....।।
कब तक संस्कृति के फूल गुलामी की लाचारी झेलेंगे,
कब तक हम अपनी जीभ काट गैरों की भाषा बोलेंगे।
अब संस्कारों की अर्थी पर वेश्या का लगा मुखौटा है,
अब पशुता की प्राचीरों में बस मानवता का धोखा है।
फिर ईसा राम रहीम सभी ने यह सन्देश उच्चारा है.......
जिसको भाषा से प्रेम नहीं वह संस्कृति का हत्यारा है....।।