जिंदगी
जिंदगी
जिंदगी जैसी है वैसी रहने दो,
रीढ़ की हड्डी टूटी है
पीठ के पीछे कैची खुली रहने दो।
जिंदगी भूखी है तो भूखी रहने दो,
रूह की आँख फूटी है
समाज के पीछे रीति-रिवाज
रंजिश घुली रहने दो।
जिंदगी क्या है हर किसी को
कुछ ना कुछ कहने दो,
लहू की बूंद भी माटी है
मुस्कान के पीछे आंखों में
नमी खिली रहने दो।
आईना नहीं है
चेहरे पर दाग लगे रहने दो,
खिड़की का काँच टूटा है
तस्वीर के पीछे ख्वाहिशों की
सीलन रहने दो।।
