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समंदर भी शान्त और काला अफ़ताब कोई रात नहीं और अंधेरा भी साथ नहीं समंदर भी शान्त और काला अफ़ताब कोई रात नहीं और अंधेरा भी साथ नहीं
चलते ही क़ब्र ही बेच देना है मेरी ये अच्छा है...। चलते ही क़ब्र ही बेच देना है मेरी ये अच्छा है...।
कल्पना काल्पनिक ना हो तो फिर कल्पना की क्या कल्पना। कल्पना काल्पनिक ना हो तो फिर कल्पना की क्या कल्पना।
खिड़की का काँच टूटा है तस्वीर के पीछे ख्वाहिशों की सीलन रहने दो। खिड़की का काँच टूटा है तस्वीर के पीछे ख्वाहिशों की सीलन रहने दो।
रात का सोया वो गुमनाम मुसाफिर अहज़ान ओस बनकर खो जाता है रात का सोया वो गुमनाम मुसाफिर अहज़ान ओस बनकर खो जाता है
जिंदगी अपंग थी, सहारा देकर, अपाहिज बना दिया...! जिंदगी अपंग थी, सहारा देकर, अपाहिज बना दिया...!
यह कविता सैनिक के दिल का दर्द बय़ां करती है। यह कविता सैनिक के दिल का दर्द बय़ां करती है।