ज़िंदगी
ज़िंदगी
जिंदगी फिर जियें आन से मान से।
प्यार कर लें प्रकृति के उपादान से।।
नील नभ में सजी अंजुमन चूमकर ,
हर कली चूमकर हर सुमन चूमकर।
भोर की तारिका को निहारा करें ,
हम बिखरती हुई हर किरन चूमकर।
पंछियों के बिखरते हुए गान से।
प्यार कर लें प्रकृति के उपादान से।।
उठ रही हर नदी की लहर चूम लें ,
वो अगर है ग़ज़ल हम बहर चूम लें।
रात काली बहुत है मगर क्या हुआ -
इसके पीछे छिपी जो सहर चूम लें।
शिशु अधर पर खिली मुग्ध मुस्कान से
प्यार कर लें प्रकृति के उपादान से।।
उग रही पौध को हम उखाड़ें नहीं ,
जिंदगी की लगन को उजाड़ें नहीं।
देह तन से लिपटती हुई धूल को -
बन सदय प्यार दें व्यर्थ झाड़ें नहीं।
नित्य उपभोग हो भाव का दान से।
प्यार कर लें प्रकृति के उपादान से।।