ज़िंदगी के रंग
ज़िंदगी के रंग
बालपन सा, जिंदगी का कैनवास !
श्वेत ,स्वच्छ ,ना कोई दाग न धब्बा ,
शनैः -शनैः ,उसमें स्नेह वर्ण भरने लगे।
रक्त ,पीत........ ,
न जाने , कितने रंग चटकने लगे ?
जिंदगी खूबसूरत नजर आने लगी।
उमंगों की बगिया ,छाने लगी।
कोयल की कूक भाने लगी।
रिश्तों के वर्ण ,इस कदर महके !
बगिया प्रफुल्लित नजर आने लगी।
अचानक न जाने......
स्याह वर्ण आ.. जीवन पर छाने लगा।
सभी रंगों में समाने लगा।
जिंदगी उस वर्ण में ,समाने लगी।
लगता था जैसे, अस्तित्व अपना खोने लगी।
वह श्वेत वर्ण...... अभी भी,
उस रंगीन कैनवस पर, नजर आ रहा था।
जो रंगों में कहीं खोया सा, दमक रहा था।
वह कैनवस......
सभी रंगों को मिला ,सुंदर चित्र दर्शा रहा था।