जिंदगी का छल
जिंदगी का छल
जिंदगी मुझ से छल कर रही है,
न जाने क्या ख्वाब दिखा रही है,
कभी आसमान में ऊंचे उड़ाकर,
मुझे ज़मीन पर पटक रही है।
सुख के दिन दिखाती रहती है,
कभी महफ़िलों में नचाती रही है,
कभी विकट स्थिति में छोड़कर,
मुझे मन में मायूस बना रही है।
कभी धूप में मुझे भटका रही है,
कभी शीतल छाँव दिलाती रही है,
कभी मुसीबतों का पहाड़ बनकर,
मुझे गमगीनी में धकेल रही है।
न कोई दिशा मुझे दिखाई देती है,
न तो कोई उम्मीद जीवन में बची है,
"मुरली" को पायमाल बनवाकर,
मेरे चेहरे पर पर्दा डाल रही है।
